स्व. गुप्तेश्वर सिंह की मनाई गई पुण्यतिथि

वाराणसी। भारत में कुछ लोग तन मन और धन के भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे हुए हैं। तन और धन से भी अधिक खतरनाक मानसिक भ्रष्टाचार है। मानसिक भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति क्या कह रहा है वह समझ नहीं पाता है।
श्याम सुंदर सिंह स्मृति सेवा संस्थान के तत्वावधान में स्वर्गीय गुप्तेश्वर सिंह की पुण्य तिथि पर आयोजित संगोष्ठी ” भ्रष्टाचार से भारत के विकास की गति धीमी ” विषय पर उक्त विचार मुख्य अतिथि डॉ कैलाश नाथ सिंह ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि तन के भ्रष्टाचार पर विचार व्यक्त करना उचित नहीं है। आर्थिक भ्रष्टाचार से दैनिक जीवन में सबका सामना हो रहा है। पूर्व वक्ता ने आर्थिक भ्रष्टाचार पर विस्तार से बहुत कुछ कह दिया है। उन्होंने कहा कि मानसिक भ्रष्टाचार इन दोनों से भी खराब है। मानसिक भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति धर्म ग्रंथ और उच्च कोटि के साहित्य में भी खोट निकालने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने रामचरित मानस के कई उदाहरण देकर भ्रष्टाचार को रेखांकित किया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता श्री सूर्य प्रसाद चौबे ने की। आगन्तुकों का स्वागत श्री श्रीपति मिश्र ने, धन्यवाद ज्ञापन श्री आशुतोष गुप्ता ने एवं संचालन वेद प्रकाश सिंह ने किया। स्वागत गीत श्रद्धा , कीर्ती और माही ने प्रस्तुत किया। लवेश लालवानी ने भाव पूर्ण प्रस्तुति की। इस अवसर पर सर्वश्री ज्ञान प्रकाश सिंह, संजय कुश्वाहा, ममता वर्मा , रीना लालवानी , गायत्री और रंजना राजभर, शीला सिंह एवं श्रीमती बसंती देवी ने गुप्तेश्वर सिंह के चित्र पर माल्यार्पण किया।